90.The City

  1. मैं इस नगर मक्का की शपथ लेता हूँ
  2. तथा तुम इस नगर में प्रवेश करने वाले हो।
  3. तथा सौगन्ध है पिता एवं उसकी संतान की
  4. हमने इन्सान को कष्ट में घिरा हुआ पैदा किया है।
  5. क्या वह समझता है कि उसपर किसी का वश नहीं चलेगा
  6. वह कहता है कि मैंने बहुत धन ख़र्च कर दिया।
  7. क्या वह समझता है कि उसे किसी ने देखा नहीं
  8. क्या हमने उसे दो आँखें नहीं दीं
  9. और एक ज़बान तथा दो होंट नहीं दिये
  10. और उसे दोनों मार्ग दिखा दिये।
  11. तो वह घाटी में घुसा ही नहीं।
  12. और तुम क्या जानो कि घाटी क्या है
  13. किसी दास को मुक्त करना।
  14. अथवा भूक के दिन (अकाल) में खाना खिलाना।
  15. किसी अनाथ संबंधी को।
  16. अथवा मिट्टी में पड़े निर्धन को।
  17. फिर वह उन लोगों में होता है जो ईमान लाये और जिन्होंने धैर्य (सहनशीलता) एवं उपकार के उपदेश दिये।
  18. यही लोग सौभाग्यशाली (दायें हाथ वाले) हैं।
  19. और जिन लोगों ने हमारी आयतों को नहीं माना, यही लोग दुर्भाग्य (बायें हाथ वाले) हैं।
  20. ऐसे लोग, हर ओर से आग में घिरे होंगे।