6.The Cattle

  1. सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने आकाशों तथा धरती को बनाया तथा अंधेरे और उजाला बनाया, फिर भी जो काफ़िर हो गये, वे दूसरों को अपने पालनहार के बराबर समझते[1] हैं।
  2. वही है, जिसने तुम्हें मिट्टी से उत्पन्न[1] किया, फिर (तुम्हारे जीवन की) अवधि निर्धारित कर दी और एक निर्धारित अवधि (प्रलय का समय) उसके पास[2] है, फिर भी तुम संदेह करते हो।
  3. वही अल्लाह पूज्य है आकाशों तथा धरती में। वह तुम्हारे भेदों तथा खुली बातों को जानता है तथा तुम जो भी करते हो, उसे जानता है।
  4. और उनके पास उनके पालनहार की आयतों (निशानियों) में से कोई आयत (निशानी) नहीं आयी, जिससे उन्होंने मुँह फेर न[1] लिए हो।
  5. उन्होंने सत्य को झुठला दिया है, जब भी उनके पास आया। तो शीघ्र ही उनके पास उसके समाचार आ जायेंगे[1], जिसका उपहास कर रहे हैं।
  6. क्या वह नहीं जानते कि उनसे पहले हमने कितनी जातियों का नाश कर दिया, जिन्हें हमने धरती में ऐसी शक्ति और अधिकार दिया था, जो अधिकार और शक्ति तुम्हें नहीं दिये हैं और हमने उनपर धारा प्रवाह वर्षा की और उनकी धरती में नहरें प्रवाहित कर दीं, फिर हमने उनके पापों के कारण उन्हें नाश[1] कर दिया और उनके पश्चात् दूसरी जातियों को पैदा कर दिया।
  7. (हे नबी!) यदि हम आपपर काग़ज़ में लिखी हुई कोई पुस्तक उतार[1] दें, फिर वे उसे अपने हाथों से छूयें, तबभी जो काफ़िर हैं, कह देंगे कि ये तो केवल खुला हुआ जादू है।
  8. तथा उन्होंने कहाः[1] इस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा[2] गया? और यदि हम कोई फ़रिश्ता उतार देते, तो निर्णय ही कर दिया जाता, फिर उन्हें अवसर नहीं दिया जाता[3]।
  9. और यदि हम किसी फ़रिश्ते को नबी बनाते, तो उसे किसी पुरुष ही के रूप में बनाते[1] और उन्हें उसी संदेह में डाल देते, जो संदेह (अब) कर रहे हैं।
  10. (हे नबी!) आपसे पहले भी रसूलों के साथ उपहास किया गया, तो जिन्होंने उनसे उपहास किया, उन्हें उनके उपहास (के दुष्परिणाम) ने घेर लिया।
  11. (हे नबी!) उनसे कहो कि धरती में फिरो, फिर देखो कि झुठलाने वालों का दुष्परिणाम किया[1] हुआ
  12. (हे नबी!) उनसे पूछिये कि जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह किसका है? कहोः अल्लाह का है! उसने अपने ऊपर दया को अनिवार्य कर[1] लिया है, वह तुम्हें अवश्य प्रलय के दिन एकत्र[2] करेगा, जिसमें कोई संदेह नहीं। जिन्होंने अपने-आपको क्षति में डाल लिया, वही ईमान नहीं ला रहे हैं।
  13. तथा उसी का[1] है, जो कुछ रात और दिन में बस रहा है और वह सब कुछ सुनता-जानता है।
  14. (हे नबी!) उनसे कहो कि क्या मैं उस अल्लाह के सिवा किसी को सहायक बना लूँ, जो आकाशों तथा धरती का बनाने वाला है, वह सबको खिलाता है और उसे कोई नहीं खिलाता? आप कहिये कि मुझे तो यही आदेश दिया गया है कि प्रथम आज्ञाकारी हो जाऊँ तथा कदापि मुश्रिकों में से न बनूँ।
  15. आप कह दें कि मैं डरता हूँ, यदि अपने पालनहार की अवज्ञा करूँ, एक घोर दिन[1] की यातना से।
  16. तथा जिससे उसे (यातना को) उस दिन फेर दिया गया, तो अल्लाह ने उसपर दया कर दी और यही खुली सफलता है।
  17. यदि अललाह तुम्हें कोई हानि पहुँचाये, तो उसके सिवा कोई नहीं, जो उसे दूर कर दे और यदि तुम्हें कोई लाभ पहुँचाये, तो वही जो चाहे, कर सकता है।
  18. तथा वही है, जो अपने सेवकों पर पूरा अधिकार रखता है तथा वह बड़ा ज्ञानी सर्वसूचित है।
  19. (हे नबी!) इन मुश्रिकों से पूछो कि किसकी गवाही सबसे बढ़ कर है? आप कह दें कि अल्लाह मेरे तथा तुम्हारे बीच गवाह[1] है तथा मेरी ओर ये क़ुर्आन वह़्यी (प्रकाशना) द्वारा भेजा गया है, ताकि मैं तुम्हें सावधान करूँ[2] तथा उसे, जिस तक ये पहुँचे। क्या वास्तव में, तुम ये साक्ष्य (गवाही) दे सकते हो कि अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य भी हैं? आप कह दें कि मैं तो इसकी गवाही नहीं दे सकता। आप कह दें कि वह तो केवल एक ही पूज्य है तथा वास्तव में, मैं तुम्हारे शिर्क से विरक्त हूँ।
  20. जिन लोगों को हमने पुस्तक[1] प्रदान की है, वे आपको उसी प्रकार पहचानते हैं, जैसे अपने पुत्रों को पहचानते[2] हैं, परन्तु जिन्होंने स्वयं को क्षति में डाल रखा है, वही ईमान नहीं ला रहे हैं।
  21. तथा उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठा आरोप लगाये अथवा उसकी आयतों को झुठलाये? निःसंदेह अत्याचारी सफल नहीं होंगे।
  22. जिस दिन हम, सबको एकत्र करेंगे, तो जिन्होंने शिर्क किया है, उनसे कहेंगे कि तुम्हारे वे साझी कहाँ गये, जिन्हें तुम (पूज्य) समझ रहे थे
  23. फिर नहीं होगा उनका उपद्रव इसके सिवा कि वे कहेंगेः अल्लाह की शपथ! हम मुश्रिक थे ही नहीं।
  24. देखो कि कैसे अपने ऊपर ही झूठ बोल गये और उनसे वे (मिथ्या पूज्य) जो बना रहे थे, खो गये
  25. और उन मुश्रिकों में से कुछ आपकी बात ध्यान से सुनते हैं और (वास्तव में) हमने उनके दिलों पर पर्दे (आवरण) डाल रखे हैं कि बात न समझें[1] और उनके कान भारी कर दिये हैं, यदि वे (सत्य के) प्रत्येक लक्षण देख लें, तब भी उसपर ईमान नहीं लायेंगे, यहाँ तक कि जब वे आपके पास आकर झगड़ते हैं, जो काफ़िर हैं, तो वे कहते हैं कि ये तो पूर्वजों की कथायें हैं।
  26. वे, उसे[1] (सुनने से) दूसरों को रोकते हैं तथा स्वयं भी दूर रहते हैं और वे अपना ही विनाश कर रहे हैं, परन्तु समझते नहीं हैं।
  27. तथा (हे नबी!) यदि आप उन्हें उस समय देखेंगे, जब वे नरक के समीप खड़े किये जायेंगे, तो वे कामना कर रहे होंगे कि ऐसा होता कि हम संसार की ओर फेर दिये जाते और अपने पालनहार की आयतों को नहीं झुठलाते और हम ईमान वालों में हो जाते।
  28. बल्कि उनके लिए वो बात खुल जायेगी, जिसे वे इससे पहले छुपा रहे थे[1] और यदि संसार में फेर दिये जायेँ, तो फिर वही करेंगे, जिससे रोके गये थे, वास्तव में, वे हैं ही झूठे।
  29. तथा उन्होंने कहा कि जीवन बस हमारा सांसारिक जीवन है और हमें फिर जीवित होना[1] नहीं है।
  30. तथा यदि आप उन्हें उस समय देखें, जब वे (परलय के दिन) अपने पालनहार के समक्ष खड़े किये जायेंगे, उस समय अल्लाह उनसे कहेगाः क्या ये (जीवन) सत्य नहीं? वे कहेंगेः क्यों नहीं? हमारे पालनहार की शपथ! इसपर अल्लाह कहेगाः तो अब अपने कुफ़्र करने की यातना चखो।
  31. निश्चय वे क्षति में पड़ गये, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठला दिया, यहाँ तक कि जब प्रलय अचानक उनपर आ जायेगी तो कहेंगेः हाय! इस विषय में हमसे बड़ी चूक हुई और वे अपने पापों का बोझ अपनी पीठों पर उठाये होंगे। तो कैसा बुरा बोझ है, जिसे वे उठा रहे हैं।
  32. तथा सांसारिक जीवन एक खेल और मनोरंजन[1] है तथा परलोक का घर ही उत्तम[2] है, उनके लिए जो अल्लाह से डरते हों, तो क्या तुम समझते[3] नहीं हो
  33. (हे नबी!) हम जानते हैं कि उनकी बातें आपको उदासीन कर देती हैं, तो वास्तव में वे आपको नहीं झुठलाते, परन्तु ये अत्याचारी अल्लाह की आयतों को नकारते हैं।
  34. और आपसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाये गये। तो इसे उन्होंने सहन किया और उन्हें दुःख दिया गया, यहाँ तक कि हमारी सहायता आ गयी तथा अल्लाह की बातों को कोई बदल नहीं[1] सकता और आपके पास रसूलों के समाचार आ चुके हैं।
  35. और यदि आपको उनकी विमुखता भारी लग रही है, तो यदि आपसे हो सके, तो धरती में कोई सुरंग खोज लें अथवा आकाश में कोई सीढ़ी लगा लें, फिर उनके पास कोई निशानी (चमत्कार) ला दें और यदि अल्लाह चाहे, तो इन्हें मार्गदर्शन पर एकत्र कर दे। अतः आप कदापि अज्ञानों में न हों।
  36. आपकी बात वही स्वीकार करेंगे, जो सुनते हों, परन्तु जो मुर्दे हैं, उन्हें अल्लाह[1] ही जीवित करेगा, फिर उसी की ओर फेरे जायेंगे।
  37. तथा उन्होंने कहा कि नबी पर उनके पालनहार की ओर से कोई चमत्कार क्यों नहीं उतारा गया? आप कह दें कि अल्लाह इसका सामर्थ्य रखता है, परन्तु अधिक्तर लोग अज्ञान हैं।
  38. धरती में विचरते जीव तथा अपने दो पंखों से उड़ते पक्षी तुम्हारी जैसी जातियाँ हैं, हमने पुस्तक[1] में कुछ कमी नहीं की[2] है, फिर वे अपने पालनहार की ओर ही एकत्र किये[3] जायेंगे।
  39. तथा जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठला दिया, वे गूँगे, बहरे, अंधेरों में हैं। जिसे अल्लाह चाहता है, कुपथ करता है और जिसे चाहता है, सीधी राह पर लगा देता है।
  40. (हे नबी!) उनसे कहो कि यदि तुमपर अल्लाह का प्रकोप आ जाये अथवा तुमपर प्रलय आ जाये, तो क्या तुम अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारोगे, यदि तुम सच्चे हो
  41. बल्कि तुम उसी को पुकारते हो, तो वह दूर करता है, उसे, जिसके लिए तुम पुकारते हो, यदि वह चाहे, और तुम उसे भूल जाते हो, जिसे साझी[1] बनाते हो।
  42. और आपसे पहले भी समुदायों की ओर हमने रसूल भेजे, तो हमने उन्हें आपदाओं और दुखों में डाला[1], ताकि वे विनय करें।
  43. तो जब उनपर हमारी यातना आई, तो वे हमारे समक्ष झुक क्यों नहीं गये? परन्तु उनके दिल और भी कड़े हो गये तथा शैतान ने उनके लिए उनके कुकर्मों को सुन्दर बना[1] दिया।
  44. तो जब उन्होंने उसे भुला दिया, जो याद दिलाये गये थे, तो हमने उनपर प्रत्येक (सुख-सुविधा) के द्वार खोल दिये। यहाँ तक कि जब, जो कुछ वे दिये गये, उससे प्रफुल्ल हो गये, तो हमने उन्हें अचानक घेर लिया और वे निराश होकर रह गये।
  45. तो उनकी जड़ काट दी गयी, जिन्होंने अत्याचार किया और सब प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो पूरे विश्व का पालनहार है।
  46. (हे नबी!) आप कहें कि क्या तुमने इसपर भी विचार किया कि यदि अल्लाह तुम्हारे सुनने तथा देखने की शक्ति छीन ले और तुम्हारे दिलों पर मुहर लगा दे, तो अल्लाह के सिवा कौन है, जो तुम्हें इसे वापस दिला सके? देखो, हम कैसे बार-बार आयतें[1] प्रस्तुत कर रहे हैं, फिर भी वे मुँह[2] फेर रहे हैं।
  47. आप कहें कि कभी तुमने इस बात पर विचार किया कि यदि तुमपर अल्लाह की यातना अचानक या खुल कर आ जाये, तो अत्याचारियों (मुश्रिकों) के सिवा किसका विनाश होगा
  48. और हम रसूलों को, इसीलिए भेजते हैं कि वे (आज्ञाकारियों को) शुभ सूचना दें तथा (अवज्ञाकारियों को) डरायें। तो जो ईमान लाये तथा अपने कर्म सुधार लिए, उनके लिए कोई भय नहीं और न वह उदासीन होंगे।
  49. और जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हें अपनी अवज्ञा के कारण यातना अवश्य मिलेगी।
  50. (हे नबी!) आप कह दें कि मेरे पास अल्लाह का कोष नहीं है, न मैं परोक्ष का ज्ञान रखता हूँ और न मैं ये कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ। मैं तो केवल उसीपर चल रहा हूँ, जो मेरी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है। आप कहें कि क्या अंधा[1] तथा आँख वाला बराबर हो जायेंगे? क्या तुम सोच विचार नहीं करते
  51. और इस (वह़्यी) के द्वारा उन्हें सचेत करो, जो इस बात से डरते हों कि वे अपने पालनहार के पास (प्रलय के दिन) एकत्र किये जायेंगे, इस दशा में कि अल्लाह के सिवा कोई सहायक तथा अनुशंसक (सिफ़ारिशी) न होगा, संभवतः वे आज्ञाकारी हो जायेँ।
  52. (हे नबी!) आप उन्हें अपने से दूर न करें, जो अपने पालनहार की वंदना प्रातः संध्या करते एवं उसकी प्रसन्नता की चाह में लगे रहते हैं। उनके ह़िसाब का कोई भार आपपर नहीं है और न आपके ह़िसाब का कोई भार उनपर[1] है, अतः यदि आप उन्हें दूर करेंगे, तो अत्याचारियों में हो जायेंगे।
  53. और इसी प्रकार[1] हमने कुछ लोगों की परीक्षा कुछ लोगों द्वारा की है, ताकि वे कहें कि क्या यही हैं, जिनपर हमारे बीच से अल्लाह ने उपकार किया[2] है? तो क्या अल्लाह कृतज्ञयों को भली-भाँति जानता नहीं है
  54. तथा (हे नबी!) जब आपके पास वे लोग आयें, जो हमारी आयतों (क़ुर्आन) पर ईमान लाये हैं, तो आप कहें कि तुम[1] पर सलाम (शान्ति) है। अल्लाह ने अपने ऊपर दया अनिवार्य कर ली है कि तुममें से जो भी अज्ञानता के कारण, कोई कुकर्म कर लेगा, फिर उसके पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर लेगा और अपना सुधार कर लेगा, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
  55. और इसी प्रकार हम आयतों का वर्णन करते हैं और इस लिए ताकि अपराधियों का पथ उजागर हो जाये (और सत्यवादियों का पथ संदिग्ध न हो)।
  56. (हे नबी!) आप (मुश्रिकों से) कह दें कि मुझे रोक दिया गया है कि मैं उनकी वंदना करूँ, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो। उनसे कह दो कि मैं तुम्हारी आकांक्षाओं पर नहीं चल सकता। मैंने ऐसा किया तो मैं सत्य से कुपथ हो गया और मैं सुपथों में से नहीं रह जाऊँगा।
  57. आप कह दें कि मैं अपने पालनहार के खुले तर्क पर स्थित[1] हूँ। और तुमने उसे झुठला दिया है। जिस (निर्णय) के लिए तुम शीघ्रता करते हो, वह मेरे पास नहीं। निर्णय तो केवल अल्लाह के अधिकार में है। वह सत्य को वर्णित कर रहा है और सर्वोत्तम निर्णयकारी है।
  58. आप कह दें कि जिस (निर्णय) के लिए तुम शीघ्रता कर रहे हो, मेरे अधिकार में होता, तो हमारे और तुम्हारे बीच निर्णय हो गया होता तथा अल्लाह अत्याचारियों[1] को भली-भाँति जानता है।
  59. और उसी (अल्लाह) के पास ग़ैब (परोक्ष) की कुंजियाँ[1] हैं। उन्हें केवल वही जानता है तथा जो कुछ थल और जल में है, वह सबका ज्ञान रखता है और कोई पत्ता नहीं गिरता परन्तु उसे वह जानता है और न कोई अन्न, जो धरती के अंधेरों में हो और न कोई आर्द्र (भीगा) और न कोई शुष्क (सूखा) है, परन्तु वह एक खुली पुस्तक में है।
  60. वही है, जो रात्रि में तुम्हारी आत्माओं को ग्रहण कर लेता है तथा दिन में जो कुछ किया है, उसे जानता है। फिर तुम्हें उस (दिन) में जगा देता है, ताकि निर्धारित अवधि पूरी हो जाये[1]। फिर तुम्हें उसी की ओर प्रत्यागत (वापस) होना है। फिर वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों से सूचित कर देगा।
  61. तथा वही है, जो अपने सेवकों पर पूरा अधिकार रखता है और तुमपर रक्षकों[1] को भेजता है। यहाँ तक कि जब तुममें से किसी के मरण का समय आ जाता है, तो हमारे फ़रिश्ते उसका प्राण ग्रहण कर लेते हैं और वह तनिक भी आलस्य नहीं करते।
  62. फिर सब, अल्लाह, अपने वास्तविक स्वामी की ओर वापिस लाये जाते हैं। सावधान! उसी को निर्णय करने का अधिकार है और वह अति शीध्र ह़िसाब लेने वाला है।
  63. (हे नबी!) उनसे पूछिए कि थल तथा जल के अंधेरों में तुम्हें कौन बचाता है, जिसे तुम विनय पूर्वक और धीरे-धीरे पुकारते हो कि यदि उसने हमें बचा लिया, तो हम अवश्य कृतज्ञों में हो जायेंगे
  64. आप कह दें कि अल्लाह ही उससे तथा प्रत्येक आपदा से तुम्हें बचाता है। फिर भी तुम उसका साझी बनाते हो
  65. आप उनसे कह दें कि वह इसका सामर्थ्य रखता है कि वह कोई यातना तुम्हारे ऊपर (आकाश) से भेज दे अथवा तुम्हारे पैरों के नीचे (धरती) से या तुम्हें सम्प्रदायों में करके एक को दूसरे के आक्रमण[1] का स्वाद चखा दे। देखिये कि हम किस प्रकार आयतों का वर्णन कर रहे हैं कि संभवतः वे समझ जायेँ।
  66. और (हे नबी!) आपकी जाति ने इस (क़ुर्आन) को झुठला दिया, जबकि वह सत्य है और आप कह दें कि मैं तुमपर अधिकारी नहीं[1] हूँ।
  67. प्रत्येक सूचना के पूरे होने का एक निश्चित समय है और शीघ्र ही तुम जान लोगे।
  68. और जब आप, उन लोगों को देखें, जो हमारी आयतों में दोष निकालते हों, तो उनसे विमुख हो जायेँ, यहाँ तक कि वे किसी दूसरी बात में लग जायें और यदि आपको शैतान भुला दे, तो याद आ जाने के पश्चात् अत्याचारी लोगों के साथ न बैठें।
  69. तथा उन[1] के ह़िसाब में से कुछ का भार उनपर नहीं है, जो अल्लाह से डरते हों, परन्तु याद दिला[2] देना उनका कर्तव्य है, ताकि वे भी डरने लगें।
  70. तथा आप उन्हें छोड़ें जिन्होंने अपने धर्म को क्रीड़ा और खेल बना लिया है। दरअसल सांसारिक जीवन ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। आप इस (क़ुर्आन) द्वारा उन्हें शिक्षा दें। ताकि कोई प्राणी अपने करतूतों के कारण बंधक न बन जाये, जिसका अल्लाह के सिवा कोई सहायक और अभिस्तावक (सिफ़ारिशी) न होगा।फिर यदि वे, सबकुछ बदले में दे दें, तो भी उनसे नहीं लिया जायेगा[1]। यही लोग अपने करतूतों के कारण बंधक होंगे। उनके लिए उनके कुफ़्र (अविश्वास) के कारण खौलता पेय तथा दुःखदायी यातना होगी।
  71. (हे नबी!) उनसे कहिए कि क्या हम अल्लाह के सिवा उनकी वंदना करें, जो हमें कोई लाभ और हानि नहीं पहुँचा सकते? और हम एड़ियों के बल फिर जायेँ, इसके पश्चात कि हमें अल्लाह ने मार्गदर्शन दे दिया है, उसके सामने, जिसे शैतानों ने धरती में बहका दिया हो, वह आश्चर्यचकित हो, उसके साथी उसे पुकार रहे हों कि सीधी राह की ओर हमारे पास आ जाओ[1]? आप कह दें कि मार्गदर्शन तो वास्तव में वही है, जो अल्लाह का मार्गदर्शन है। और हमें तो, यही आदेश दिया गया है कि हम विश्व के पालनहार के आज्ञाकारी हो जायेँ।
  72. और नमाज़ की स्थाप्ना करें और उससे डरते रहें तथा वही है, जिसके पास तुम एकत्र किये जाओगे।
  73. और वही है, जिसने आकाशों तथा धरती की रचना सत्य के साथ की[1] है और जिस दिन वह कहेगा कि "हो जा" तो वह (प्रलय) हो जायेगा। उसका कथन सत्य है और जिस दिन नरसिंघा में फूँक दिया जायेगा, उस दिन उसी का राज्य होगा। वह परोक्ष तथा[2] प्रत्यक्ष का ज्ञानी है और वही गुणी सर्वसूचित है।
  74. तथा जब इब्राहीम ने अपने पिता आज़र से कहाः क्या आप मुर्तियों को पूज्य बनाते हो? मैं आपको तथा आपकी जाति को खुले कुपथ में देख रहा हूँ।
  75. और इब्राहीम को इसी प्रकार हम आकाशों तथा धरती के राज्य की व्यवस्था दिखाते रहे और ताकि वह विश्वासियों में हो जाये।
  76. तो जब उसपर रात छा गयी, तो उसने एक तारा देखा। कहाः ये मेरा पालनहार है। फिर जब वह डूब गया, तो कहाः मैं डूबने वालों से प्रेम नहीं करता।
  77. फिर जब उसने चाँद को चमकते देखा, तो कहाः ये मेरा पालनहार है। फिर जब वह डूब गया, तो कहाः यदि मुझे मेरे पालनहार ने मार्गदर्शन नहीं दिया, तो मैं अवश्य कुपथों में से हो जाऊँगा।
  78. फिर जब (प्रातः) सूर्य को चमकते देखा, तो कहाः ये मेरा पालनहार है। ये सबसे बड़ा है। फिर जब वह भी डूब गया, तो उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! निःसंदेह मैं उससे विरक्त हूँ, जिसे तुम (अल्लाह का) साझी बनाते हो।
  79. मैंने तो अपना मुख एकाग्र होकर, उसकी ओर कर लिया है, जिसने आकाशों तथा धरती की रचना की है और मैं मुश्रिकों में से नहीं[1] हूँ।
  80. और जब उसकी जाति ने उससे वाद-झगड़ा किया, तो उसने कहाः क्या तुम अल्लाह के विषय में मुझसे झगड़ रहे हो, जबकि उसने मुझे सुपथ दिखा दिया है तथा मैं उससे नहीं डरता हूँ, जिसे तुम साझी बनाते हो। परन्तु मेरा पालनहार कुछ चाहे (तभी वह मुझे हानि पहुँचा सकता है)। मेरा पालनहार प्रत्येक वस्तु को अपने ज्ञान में समोये हुए है। तो क्या तुम शिक्षा नहीं लेते
  81. और मैं उनसे कैसे डरूँ, जिन्हें तुमने उसका साझी बना लिया है, जब तुम उस चीज़ को उसका साझी बनाने से नहीं डरते, जिसका अल्लाह ने कोई तर्क (प्रमाण) नहीं उतारा है? तो दोनों पक्षों में कौन अधिक शान्त रहने का अधिकारी है, यदि तुम कुछ ज्ञान रखते हो
  82. जो लोग ईमान लाये और अपने ईमान को अत्याचार (शिर्क) से लिप्त नहीं[1] किया, उन्हीं के लिए शान्ति है तथा वही मार्गदर्शन पर हैं।
  83. ये हमारा तर्क था, जो हमने इब्राहीम को उसकी जाति के विरुध्द प्रदान किया, हम जिसके पदों[1] को चाहते हैं, ऊँचा कर देते हैं। वास्तव में, आपका पालनहार गुणी तथा ज्ञानी है।
  84. और हमने, इब्राहीम को (पुत्र) इस्ह़ाक़ तथा (पौत्र) याक़ूब प्रदान किये। प्रत्येक को हमने मार्गदर्शन दिया और उससे पहले हमने नूह़ को मार्गदर्शन दिया और इब्राहीम की संतति में से दावूद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ, मूसा तथा हारून को। इसी प्रकार हम सदाचारियों को प्रतिफल प्रदान करते हैं।
  85. तथा ज़करिय्या, यह़्या, ईसा और इल्यास को। ये सभी सदाचारियों में थे।
  86. तथा इस्माईल, यस्अ, यूनुस और लूत को। प्रत्येक को हमने संसार वासियों पर प्रधानता दी है।
  87. तथा उनके पूर्वजों, उनकी संतति तथा उनके भाईयों को। हमने इनसब को निर्वाचित कर लिया और इन्हें सुपथ दिखा दिया था।
  88. यही अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा अपने भक्तों में से जिसे चाहे, सुपथ दर्शा देता है और यदि वे शिर्क करते, तो उनका सब किया-धरा व्यर्थ हो जाता[1]।
  89. (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें हमने पुस्तक, निर्णय शक्ति एवं नुबूवत प्रदान की। फिर यदि ये (मुश्रिक) इन बातों को नहीं मानते, तो हमने इसे, कुछ ऐसे लोगों को सौंप दिया है, जो इसका इन्कार नहीं करते।
  90. (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने सुपथ दर्शा दिया, तो आपभी उन्हीं के मार्गदर्शन पर चलें तथा कह दें कि मैं इस (कार्य)[1] पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। ये सब संसार वासियों के लिए एक शिक्षा के सिवा कुछ नहीं है।
  91. तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान जैसे करना चाहिए, नहीं किया। जब उन्होंने कहा कि अल्लाह ने किसी पुरुष पर कुछ नहीं उतारा। उनसे पूछिए कि वो पुस्तक, जिसे मूसा लाये, जो लोगों के लिए प्रकाश तथा मार्गदर्शन है, किसने उतारी है, जिसे तुम पन्नों में करके रखते हो? जिसमें से तुम कुछ को, लोगों के लिए बयान करते हो और बहुत-कुछ छुपा रहे हो तथा तुम्हें उसका ज्ञान दिया गया, जिसका तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को ज्ञान न था? और कह दें कि अल्लाह ने। फिर उन्हें उनके विवादों में खेलते हुए छोड़ दें।
  92. तथा ये (क़ुर्आन) एक पुस्तक है, जिसे हमने (तौरात के समान) उतारा है। जो शुभ तथा अपने से पूर्व (की पुस्तकों) को सच बताने वाली है, ताकि आप "उम्मुल क़ुरा" (मक्का नगर) तथा उसके चतुर्दिक के निवासियों को सचेत[1] करें तथा जो परलोक के प्रति विश्वास रखते हैं, वही इसपर ईमान लाते हैं और वही अपनी नमाज़ों का पालन करते[2] हैं।
  93. और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ घड़े और कहे कि मेरी ओर प्रकाशना (वह़्यी) की गयी है, जबकि उसकी ओर वह़्यी (प्रकाशना) नहीं की गयी? तथा जो ये कहे कि अल्लाह ने जो उतारा है, उसके समान मैं भी उतार दूँगा? और (हे नबी!) आप यदि ऐसे अत्याचारी को मरण की घोर दशा में देखते, जबकि फ़रिश्ते उनकी ओर हाथ बढ़ाये (कहते हैं:) अपने प्राण निकालो! आज तुम्हें इस कारण अपमानकारी यातना दी जायेगी कि तुम अल्लाह पर झूठ बोलते और उसकी आयतों को (मानने से) अभिमान करते थे।
  94. तथा (अल्लाह) कहेगाः तुम मेरे सामने उसी प्रकार अकेले आ गये, जैसे तुम्हें प्रथम बार हमने पैदा किया था तथा हमने जो कुछ दिया था, अपने पीछे (संसार ही में) छोड़ आये और आज हम तुम्हारे साथ, तुम्हारे अभिस्तावकों (सिफ़ारिशियों) को नहीं देख रहे हैं, जिनके बारे में तुम्हारा भ्रम था कि तुम्हारे कामों में वे (अल्लाह के) साझी हैं? निश्चय तुम्हारे बीच के संबंध भंग हो गये हैं और तुम्हारा सब भ्रम खो गया है।
  95. वास्तव में, अल्लाह ही अन्न तथा गुठली को (धरती के भीतर) फाड़ने वाला है। वह निर्जीव से जीवित को निकालता है तथा जीवित से निर्जीव को निकालने वाला है। वही अल्लाह (सत्य पूज्य) है। फिर तुम कहाँ बहके जा रहे हो
  96. वह प्रभात का तड़काने वाला है और उसीने सुख के लिए रात्रि बनाई तथा सूर्य और चाँद ह़िसाब के लिए बनाये। ये प्रभावी गुणी का निर्धारित किया हुआ अंकन (माप)[1] है।
  97. उसीने तुम्हारे लिए तारे बनाये हैं, ताकि उनकी सहायता से थल तथा जल के अंधकारों में रास्ता पाओ। हमने (अपनी दया के) लक्षणों का उनके लिए विवरण दे दिया है, जो लोग ज्ञान रखते हैं।
  98. वही है, जिसने तुम्हें एक जीव से पैदा किया। फिर तुम्हारे लिए (संसार में) रहने का स्थान है और एक समर्पन (मरण) का स्थान है। हमने उन्हें अपनी आयतों (लक्षणों) का विवरण दे दिया, जो समझ-बूझ रखते हैं।
  99. वही है, जिसने आकाश से जल की वर्षा की, फिर हमने उससे प्रत्येक प्रकार की उपज निकाल दी। फिर उससे हरियाली निकाल दी। फिर उससे तह पर तह दाने निकालते हैं तथा खजूर के गाभ से गुच्छे झुके हुए और अंगूरों तथा ज़ैतून और अनार के बाग़, समरूप तथा स्वाद में अलग-अलग। उसके फल को देखो, जब फल लाता है तथा उसके पकने को। निःसंदेह इनमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानियाँ (लक्षण)[1] हैं, जो ईमान लाते हैं।
  100. और उन्होंने जिन्नों को अल्लाह का साझी बना लिया। जबकि अल्लाह ही ने उनकी उत्पत्ति की है और बिना ज्ञान के उसके लिए पुत्र तथा पुत्रियाँ घड़ लीं। वह पवित्र तथा उच्च है, उन बातों से, जो वे लोग कह रहे हैं।
  101. वह आकाशों तथा धरती का अविष्कारक है, उसके संतान कहाँ से हो सकते हैं, जबकि उसकी पत्नी नहीं है? तथा उसीने प्रत्येक वस्तु को पैदा किया है और वह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानता है।
  102. वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, उसके अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं। वह प्रत्येक वस्तु का उत्पत्तिकार है। अतः उसकी इबादत (वंदना) करो तथा वही प्रत्येक चीज़ का अभिरक्षक है।
  103. उसका, आँखें इद्राक नहीं कर सकतीं[1], जबकी वह सब कुछ देख रहा है। वह अत्यंत सूक्ष्मदर्शी और सब चीज़ों से अवगत है।
  104. तुम्हारे पास निशानियाँ आ चुकी हैं। तो जिसने समझ-बूझ से काम लिया, उसका लाभ उसी के लिए है और जो अन्धा हो गया, तो उसकी हानि उसीपर है और मैं तुमपर संरक्षक[1] नहीं हूँ।
  105. और इसी प्रकार, हम अनेक शैलियों में आयतों का वर्णन कर रहे हैं। ताकि वे (काफ़िर) कहें कि आपने पढ़[1] लिया है और ताकि हम उन लोगों के लिए (तर्कों को) उजागर कर दें, जो ज्ञान रखते हैं।
  106. आप उसपर चलें, जो आपपर आपके पालनहार की ओर से वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुश्रिकों की बातों पर ध्यान न दें।
  107. और यदि अल्लाह चाहता, तो वो लोग साझी न बनाते और हमने आपको उनपर निरीक्षक नहीं बनाया है और न ही आप उनपर[1] अधिकारी हैं।
  108. और हे ईमान वालो! उन्हें बुरा न कहो, जिन (मूर्तियों) को वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं। अन्यथा, वे लोग अज्ञानता के कारण अति करके अल्लाह को बुरा कहेंगे। इसी प्रकार, हमने प्रत्येक समुदाय के लिए उनके कर्म को सुशोभित बना दिया है। फिर उनके पालनहार की ओर ही उन्हें जाना है। तो उन्हें बता देगा, जो वे करते रहे।
  109. और उन मुश्रिकों ने बलपूर्वक शपथें लीं कि यदि हमारे पास कोई आयत (निशानी) आ जाये, तो हम उसपर अवश्य ईमान लायेंगे। आप कह दें: आयतें (निशानियाँ) तो अल्लाह ही के पास हैं और (हे ईमान वालो!) तुम्हें क्या पता कि वह निशानियाँ जब आ जायेँगी, तो वे ईमान[1] नहीं लायेंगे।
  110. और हम उनके दिलों और आँखों को ऐसे ही फेर[1] देंगे, जैसे वे पहली बार इस (क़ुर्आन) पर ईमान नहीं लाये और हम उन्हें उनके कुकर्मों में बहकते छोड़ देंगे।
  111. और यदि हम इनकी ओर (आकाश से) फ़रिश्ते उतार देते और इनसे मुर्दे बात करते और इनके समक्ष प्रत्येक वस्तु एकत्र कर देते, तबभी ये ईमान नहीं लाते, परन्तु जिसे अल्लाह (मार्गदर्शन देना) चाहता। और इनमें से अधिक्तर (तथ्य से) अज्ञान हैं।
  112. और (हे नबी!) इसी प्रकार, हमने मनुष्यों तथा जिन्नों में से प्रत्येक नबी का शत्रु बना दिया, जो धोखा देने के लिए एक-दूसरे को शोभनीय बात सुझाते रहते हैं और यदि आपका पालनहार चाहता, तो ऐसा नहीं करते। तो आप उन्हें छोड़ दें और उनकी घड़ी हई बातों को।
  113. (वे ऐसा इस लिए करते हैं) ताकि उसकी ओर, उन लोगों के दिल झुक जायें, जो प्रलोक पर विश्वास नहीं रखते और ताकि वे उससे प्रसन्न हो जायेँ और ताकि वे भी वही कुकर्म करने लगें, जो कुकर्म वे लोग कर रहे हैं।
  114. (हे नबी!) उनसे कहो कि क्या मैं अल्लाह के सिवा किसी दूसरे न्यायकारी की खोज करूँ, जबकि उसीने तुम्हारी ओर ये खुली पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी[1] है? तथा जिहें हमने पुस्तक[2] प्रदान की है, वे जानते हैं कि ये क़ुर्आन आपके पालनहार की ओर से सत्य के साथ उतरा है। अतः आप संदेह करने वालों में से न हों।
  115. आपके पालनहार की बात सत्य तथा न्याय की है, कोई उसकी बात (नियम) बदल नहीं सकता और वह सबकुछ सुनने-जानने वाला है।
  116. और (हे नबी!) यदि, आप संसार के अधिक्तर लोगों की बात मानेंगे, तो वे आपको अल्लाह के मार्ग से बहका देंगे। वे केवल अनुमान पर चलते[1] और आँकलन करते हैं।
  117. वास्तव में, आपका पालनहार ही अधिक जानता है कि कौन उसकी राह से बहकता है तथा वही उन्हें भी जानता है, जो सुपथ पर हैं।
  118. तो उन पशुओं में से, जिनपर वध करते समय अल्लाह का नाम लिया गया हो खाओ[1], यदि तुम उसकी आयतों (आदेशों) पर ईमान (विश्वास) रखते हो।
  119. और तुम्हारे, उसमें से न खाने का क्या कारण है, जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया[1] हो, जबकि उसने तुम्हारे लिए स्पष्ट कर दिया है, जिसे तुमपर ह़राम (अवैध) किया है? परन्तु जिस (वर्जित) के (खाने के पर) विवश कर दिये जाओ[2] और वास्तव में, बहुत-से लोग अपनी मनमानी के लिए, लोगों को अपनी अज्ञानता के कारण बहकाते हैं। निश्चय आपका पालनहार उल्लंघनकारियों को भली-भाँति जानता है।
  120. (हे लोगो!) खुले तथा छुपे पाप छोड़ दो। जो लोग पाप कमाते हैं, वे अपने कुकर्मों का प्रतिकार (बदला) दिये जायेंगे।
  121. तथा उसमें से न खाओ, जिसपर अल्लाह का नाम न लिया गया हो। वास्तव में, उसे खाना (अल्लाह की) अवज्ञा है। निःसंदेंह, शैतान अपने सहायकों के मन में संशय डालते रहते हैं, ताकि वे तुमसे विवाद करें[1] और यदि तुमने उनकी बात मान ली, तो निश्चय तुम मुश्रिक हो।
  122. तो क्या, जो निर्जीव रहा हो, फिर हमने उसे जीवन प्रदान किया हो तथा उसके लिए प्रकाश बना दिया हो, जिसके उजाले में वह लोगों के बीच चल रहा हो, उस जैसा हो सकता है, जो अंधेरों में हो, उससे निकल न रहा हो[1]? इसी प्रकार, काफ़िरों के लिए उनके कुकर्म सुंदर बना दिये गये हैं।
  123. और इसी प्रकार, हमने प्रत्येक बस्ती में उसके बड़े अपराधियों को लगा दिया, ताकि उससे षड्यंत्र रचें तथा वे अपने ही विरुध्द षड्यंत्र रचते[1] हैं, परन्तु समझते नहीं हैं।
  124. और जब उनके पास कोई निशानी आती है, तो कहते हैं कि हम उसे कदापि नहीं मानेंगे, जब तक उसी के समान हमें भी प्रदान न किया जाये, जो अल्लाह के रसूलों को प्रदान किया गया है। अल्लाह ही अधिक जानता है कि अपना संदेश पहुँचाने का काम किससे ले। जो अपराधी हैं, शीध्र ही अल्लाह के पास उन्हें अपमान तथा कड़ी यातना, उस षड्यंत्र के बदले में मिलेगी, जो वे कर रहे हैं।
  125. तो जिसे अल्लाह मार्ग दिखाना चाहता है, उसका सीना (वक्ष) इस्लाम के लिए खोल देता है और जिसे कुपथ करना चाहता है, उसका सीना संकीर्ण (तंग) कर देता है। जैसे वह बड़ी कठिनाई से आकाश पर चढ़ रहा[1] हो। इसी प्रकार, अल्लाह उनपर यातना भेज देता है, जो ईमान नहीं लाते।
  126. और यही (इस्लाम) आपके पालनहार की सीधी राह है। हमने उन लोगों के लिए आयतें खोल दी हैं, जो शिक्षा ग्रहण करते हों।
  127. उन्हीं के लिए आपके पालनहार के पास शान्ति का घर (स्वर्ग) है और वही उनके सुकर्मों के कारण उनका सहायक होगा।
  128. तथा (हे नबी!) याद करो, जब वह सबको एकत्र करके (कहेगाः) हे जिन्नों के गिरोह! तुमने बहुत-से मनुष्यों को कुपथ कर दिया और मानव में से उनके मित्र कहेंगे कि हे हमारे पालनहार! हम एक-दूसरे से लाभान्वित होते रहे[1] और वह समय आ पहुँचा, जो तूने हमारे लिए निर्धारित किया था। (अल्लाह) कहेगाः तुम सबका आवास नरक है, जिसमें सदावासी होगे। परन्तु, जिसे अल्लाह (बचाना) चाहे। वास्तव में, आपका पालनहार गुणी सर्व ज्ञानी है।
  129. और इसी प्रकार, हम अत्याचारियों को उनके कुकर्मों के कारण एक-दूसरे का सहायक बना देते हैं।
  130. (तथा कहेगाः) हे जिन्नों तथा मनुष्यों के (मुश्रिक) समुदाय! क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आये,[1] जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाते और तुम्हें तुम्हारे इस दिन (के आने) से सावधान करते? वे कहेंगेः हम स्वयं अपने ही विरुध्द गवाह हैं। उन्हें सांसारिक जीवन ने धोखे में रखा था और अपने ही विरुध्द गवाह हो गये कि वास्तव में वही काफ़िर थे।
  131. (हे नबी!) ये (नबियों का भेजना) इसलिए हुआ कि आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि अत्याचार से बस्तियों का विनाश कर दे[1] , जबकि उसके निवासी (सत्य से) अचेत रहे हों।
  132. प्रत्येक के लिए उसके कर्मानुसार पद हैं और आपका पालनहार लोगों के कर्मों से अचेत नहीं है।
  133. तथा आपका पालनहार निस्पृह दयाशील है। वह चाहे तो तुम्हें ले जाये और तुम्हारे स्थान पर दूसरों को ले आये। जैसे तुम लोगों को दूसरे लोगों की संतति से पैदा किया है।
  134. तुम्हें जिस (प्रलय) का वचन दिया जा रहा है, उसे अवश्य आना है और तुम (अल्लाह को) विवश नहीं कर लकते।
  135. आप कह दें: हे मेरी जाति के लोगो! (यदि तुम नहीं मानते) तो अपनी दशा पर कर्म करते रहो। मैं भी कर्म कर रहा हूँ। शीघ्र ही तुम्हें ये ज्ञान हो जायेगा कि किसका अन्त (परिणाम)[1] अच्छा है। निःसंदेह अत्याचारी सफल नहीं होंगे।
  136. तथा उन लोगों ने, उस खेती और पशुओं में, जिन्हें अल्लाह ने पैदा किया है, उसका एक भाग निश्चित कर दिया, फिर अपने विचार से कहते हैं: ये अल्लाह का है और ये उन (देवताओं) का है, जिन्हें उन्होंने (अल्लाह का) साझी बनाया है। फिर जो उनके बनाये हुए साझियों का है, वह तो अल्लाह को नहीं पहुँचता, परन्तु जो अल्लाह का है, वह उनके साझियों[1] को पहुँचता है। वे क्या ही बुरा निर्णय करते हैं
  137. और इसी प्रकार, बहुत-से मुश्रिकों के लिए अपनी संतान के वध करने को उनके बनाये हुए साझियों ने सुशोभित कर दिया है, ताकि उनका विनाश कर दें और ताकि उनके धर्म को उनपर संदिग्ध कर दें और यदि अल्लाह चाहता, तो वे ये (कुकर्म) नहीं करते। अतः, आप उन्हें छोड़[1] दें तथा उनकी बनायी हुई बातों को।
  138. तथा वे कहते हैं कि ये पशु और खेत वर्जित हैं, इन्हें वही खा सकता है, जिसे हम अपने विचार से खिलाना चाहें, फिर कुछ पशु हैं, जिनकी पीठ ह़राम[1] (वर्जित) हैं और कुछ पशु हैं, जिनपर (वध करते समय) अल्लाह का नाम नहीं लेते, अल्लाह पर आरोप लगाने के कारण, अल्लाह उन्हें उनके आरोप लगाने का बदला अवश्य देगा।
  139. तथा उन्होंने कहा कि जो इन पशुओं के गर्भों में है, वो हमारे पुरुषों के लिए विशेष है और हमारी पत्नियों के लिए वर्जित है और यदि मुर्दा हो, तो सभी उसमें साझी हो सकते[1] हैं। अल्लाह उनके विशेष करने का कुफल उन्हें अवश्य देगा। वास्तव में, वह तत्वज्ञ अति ज्ञानी है।
  140. वास्तव में वे क्षति में पड़ गये, जिन्होंने मूर्खता से किसी ज्ञान के बिना अपनी संतान को वध किया[1] और उस जीविका को, जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान की, अल्लाह पर आरोप लगाकर, अवैध बना लिया, वे बहक गये और सीधी राह पर नहीं आ सके।
  141. अल्लाह वही है, जिसने बेलों वाले तथा बिना बेलों वाले बाग़ पैदा किये तथा खजूर और खेत, जिनसे विभिन्न प्रकार की पैदावार होती है और ज़ैतुन तथा अनार समरूप तथा स्वाद में विभिन्न, इसका फल खाओ, जब फले और फल तोड़ने के समय कुछ दान करो तथा अपव्यय[1] (बेजा खर्च) न करो। निःसंदेह, अल्लाह बेजा ख़र्च करने वालों से प्रेम नहीं करता।
  142. तथा चौपायों में कुछ सवारी और बोझ लादने योग्य[1] हैं और कुछ धरती से लगे[2] हुए। तुम उनमें से खाओ, जो अल्लाह ने तुम्हें जीविका प्रदान की है और शैतान के पदचिन्हों पर न चलो, वास्तव में, वह तुम्हारा खुला शत्रु[3] है।
  143. आठ पशु आपस में जोड़े हैं: भेड़ में से दो तथा बकरी में से दो। आप उनसे पूछिये कि क्या अल्लाह ने दोनों के नर ह़राम (वर्जित) किये अथवा दोनों की मादा अथवा दोनों के गर्भ में जो बच्चे हों? मुझे ज्ञान के साथ बताओ, यदि तुम सच्चे हो।
  144. और ऊँट में से दो तथा गाय में से दो। आप पूछिये कि क्या अल्लाह ने दोनों के नर ह़राम (वर्जित) किये हैं अथवा दोनों की मादा अथवा दोनों के गर्भ में जो बच्चे हों? क्या तुम उपस्थित थे, जब अल्लाह ने तुम्हें इसका आदेश दिया था, तो बताओ? उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो बिना ज्ञान के अल्लाह पर झूठ घड़े? निश्चय अल्लाह अत्याचारियों को संमार्ग नहीं दिखाता।
  145. (हे नबी!) आप कह दें कि उसमें, जो मेरी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की गई है, इन[1] में से खाने वालों पर कोई चीज़ वर्जित नहीं है, सिवाय उसके, जो मरा हुआ हो[2], बहा हुआ रक्त हो या सुअर का मांस हो; क्योंकि वह अशुध्द है, अथवा अवैध हो, जिसे अल्लाह के सिवा दूसरे के नाम पर वध किया गया हो। परन्तु जो विवश हो जाये (तो वह खा सकता है) यदि वह द्रोही तथा सीमा लांघने वाला न हो। तो वास्तव में आप का पालनहार अति क्षमी दयावान्[3] है।
  146. तथा हमने यहूदियों पर नखधारी[1] जीव ह़राम कर दिये थे और गाय तथा बकरी में से उनपर दोनों की चर्बियाँ ह़राम (वर्जित) कर दी[2] थीं। परन्तु जो दोनों की पीठों या आँतों से लगी हों अथवा जो किसी हड्डी से मिली हुई हो। ये हमने उनकी अवज्ञा के कारण उन्हें[3] प्रतिकार (बदला) दिया था तथा निश्चय हम सच्चे हैं।
  147. फर (हे नबी!) यदि ये लोग आपको झुठलायें, तो कह दें कि तुम्हारा पालनहार विशाल दयाकारी है तथा उसकी यातना को अपराधियों से फेरा नहीं जा सकेगा।
  148. मिश्रणवादी अवश्य कहेंगेः यदि अल्लाह चाहता, तो हम तथा हमारे पूर्वज (अल्लाह का) साझी न बनाते और न कुछ ह़राम (वर्जित) करते। इसी प्रकार, इनसे पूर्व के लोगों ने (रसूलों को) झुठलाया था, यहाँ तक कि हमारी यातना का स्वाद चख लिया। (हे नबी!) उनसे पूछिये कि क्या तुम्हारे पास (इस विषय में) कोई ज्ञान है, जिसे तुम हमारे समक्ष प्रस्तुत कर सको? तुम तो केवल अनुमान पर चलते हो और केवल आँकलन कर रहे हो।
  149. (हे नबी!) आप कह दें कि पूर्ण तर्क अल्लाह ही का है। तो यदि वह चाहता, तो तुम सबको सुपथ दिखा देता[1]।
  150. आप कहिए कि अपने साक्षियों (गवाहों) को लाओ[1], जो साक्ष्य दें कि अल्लाह ने इसे ह़राम (अवैध) कर दिया है। फिर यदि वे साक्ष्य (गवाही) दें, तबभी आप उनके साथ होकर इसे न मानें तथा उनकी मनमानी पर न चलें, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठला दिया और परलोक पर ईमान (विश्वास) नहीं रखते तथा दूसरों को अपने पालनहार के बराबर करते हैं।
  151. आप उनसे कहें कि आओ, मैं तुम्हें (आयतें) पढ़कर सुना दूँ कि तुमपर, तुम्हारे पालनहार ने क्या ह़राम (अवैध) किया है? वो ये है कि किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ, माता-पिता के साथ उपकार करो और अपनी संतानों को निर्धनता के भय से वध न करो। हम तुम्हें जीविका देते हैं और उन्हें भी देंगे और निर्लज्जा की बातों के समीप भी न जाओ, खुली हों अथवा छुपी और जिस प्राण को अल्लाह ने ह़राम (अवैध) कर दिया है, उसे वध न करो, परन्तु उचित कारण[1] से। अल्लाह ने तुम्हें इसका आदेश दिया है, ताकि इसे समझो।
  152. और अनाथ के धन के समीप न जाओ, परन्तु ऐसे ढंग से, जो उचित हो। यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाये तथा नाप-तोल न्याय के साथ पूरा करो। हम किसी प्राण पर उसकी सकत से अधिक भार नहीं रखते और जब बोलो तो न्याय करो, यद्यपि समीपवर्ती ही क्यों न हो और अल्लाह का वचन पूरा करो, उसने तुम्हें इसका आदेश दिया है, संभवतः तुम शिक्षा ग्रहण करो।
  153. तथा (उसने बताया कि) ये (इस्लाम ही) अल्लाह की सीधी राह[1] है। अतः इसीपर चलो और दूसरी राहों पर न चलो, अन्यथा वह तुम्हें उसकी राह से दूर करके तित्तर-बित्तर कर देंगे। यही है, जिसका आदेश उसने तुम्हें दिया है, ताकि तुम उसके आज्ञाकारी रहो।
  154. फिर हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की थी, उसपर पुरस्कार पूरा करने के लिए, जो सदाचारी हो तथा प्रत्येक वस्तु के विवरण के लिए तथा ये मार्गदर्शन और दया थी, ताकि वे अपने पालनहार से मिलने पर ईमान लायें।
  155. तथा (उसी प्रकार) ये पुस्तक (क़ुर्आन) हमने अवतरित की है, ये बड़ा शुभकारी है, अतः इसपर चलो[1] और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।
  156. ताकि (हे अरब वासियो!) तुम ये न कहो कि हमसे पूर्व दो समुदाय (यहूद तथा ईसाई) पर पुस्तक उतारी गयी और हम उनके पढ़ने-पढ़ाने से अनजान रह गये।
  157. या ये न कहो कि यदि हमपर पुस्तक उतारी जाती, तो हम निश्चय उनसे अधिक सीधी राह पर होते, तो अब तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक खुला तर्क आ गया, मार्गदर्शन तथा दया आ गयी। फिर उससे बड़ा अत्यचारी कौन होगा, जो अल्लाह की आयतों को मिथ्या कह दे और उनसे कतरा जाये? और जो लोग हमारी आयतों से कतराते हैं, हम उनके कतराने के बदले उन्हें कड़ी यातना देंगे।
  158. क्या वे लोग इसी बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके पास फ़रिश्ते आ जायें, या स्वयं उनका पालनहार आ जाये या आपके पालनहार की कोई आयत (निशानी) आ जाये?[1] जिस दिन आपके पालनहार की कोई निशानी आ जायेगी, तो किसी प्राणी को उसका ईमान लाभ नहीं देगा, जो पहले ईमान न लाया हो या अपने ईमान की स्थिति में कोई सत्कर्म न किया हो। आप कह दें कि तुम प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  159. जिन लोगों ने अपने धर्म में विभेद किया और कई समुदाय हो गये, (हे नबी!) आपका उनसे कोई संबंध नहीं, उनका निर्णय अल्लाह को करना है, फिर वह उन्हें बतायेगा कि वे क्या कर रहे थे।
  160. जो (प्रलय के दिन) एक सत्कर्म लेकर (अल्लाह) से मिलेगा, उसे उसके दस गुना प्रतिफल मिलेगा और जो कुकर्म लायेगा, तो उसको उसी के बराबर कुफल दिया जायेगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
  161. (हे नबी!) आप कह दें कि मेरे पालनहार ने निश्चय मुझे सीधी राह (सुपथ) दिखा दी है। वही सीधा धर्म, जो एकेश्वरवादी इब्राहीम का धर्म था और वह मुश्रिकों में से न था।
  162. आप कह दें कि निश्चय मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी तथा मेरा जीवन-मरण संसार के पालनहार अल्लाह के लिए है।
  163. जिसका कोई साझी नहीं तथा मुझे इसी का आदेश दिया गया है और मैं प्रथम मुसलमानों में से हूँ।
  164. आप उनसे कह दें कि क्या मैं अल्लाह के सिवा किसी और पालनहार की खोज करूँ? जबकि वह (अल्लाह) प्रत्येक चीज़ का पालनहार है तथा कोई प्राणी, कोई भी कुकर्म करेगा, तो उसका भार उसी के ऊपर होगा और कोई किसी दूसरे का बोझ नहीं उठायेगा। फिर (अंततः) तुम्हें अपने पालनहार के पास ही जाना है। तो जिन बातों में तुम विभेद कर रहे हो वो तुम्हें बता देगा।
  165. वही है, जिसने तुम्हें धरती में अधिकार दिया है और तुममें से कुछ को (धन शक्ति में) दूसरे से कई श्रेणियाँ ऊँचा किया है। ताकि उसमें तुम्हारी परीक्षा[1] ले, जो तुम्हें दिया है। वास्तव में, आपका पालनहार शीघ्र ही दण्ड देने वाला[2] है और वास्तव में, वह अति क्षमी दयावान् है।